2212 2212 2212
साँसों की इस खिड़की पे तू पर्दा न कर
मैं मर ही जाऊँगा मुझे तन्हा न कर
सुनता रहा तेरी हर इक-इक मोड़ पर
ऐ मेरे दिल अब कोई और नख़रा न कर
आँखों को ख़ू है सहरा जैसा रहने का
बस इतनी रहमत कर इन्हें दरिया न कर
केवल सदाक़त बोलना ही सीखा है
आहिस्ता मेरे लहजे पे हमला न कर
ये ख़्वाहिशें पौधे हैं ख़ुशियों की मियाँ
इनको किसी के वास्ते रौंदा न कर
ये चाँदनी आँखों को भाती है बहुत
मेरे ख़ुदा इस चाँद पे पर्दा न कर
- Achyutam Yadav 'Abtar'
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