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कभी भी कोई भी ज़ुल्मी मुझे बशर न लगे
और इस नज़रिये को मेरे कभी नज़र न लगे
अगर नदी के भयानक भँवर से डर न लगे
तो फिर नदी को भी तैराक बे-हुनर न लगे
लगा के दाँव पे डर हारनी है ये बाज़ी
मैं चाहता हूँ कि मुझको अब और डर न लगे
ये क्या तिलिस्म-ए-सहर है या फिर कोई धोका
कि रात रात ही है ऐसा रात-भर न लगे
या तो ये दिल मेरा काँपेगा या तो फिर ये दहर
दबे या फिर उठे पर सौत बे-असर न लगे
बहुत ज़रूरी है फ़य्याज़ों का यहाँ रहना
दुआ है मुझको तेरी उम्र उम्र-भर न लगे
मैं इसलिए भी हूँ किरदारों का बहुत मोहताज
कि अगली नस्लों को ये क़िस्सा मुख़्तसर न लगे
- अच्युतम यादव 'अबतर'
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