Ad Code

212 212 212 212 बह्र पर ग़ज़ल

212 212 212 212 बह्र पर ग़ज़ल


212 212 212 212


ज़िन्दगी ने मेरे साथ क्या क्या किया
खोल दीं मेरी आँखें ये अच्छा किया

अपनी मंज़िल पे आ ही न पाते कभी
हमने ही रस्तों के साथ धोका किया

देखकर इस ग़रीबी का आलम ही तो
धूप ने देर तक मुझपे साया किया

एक मल्लाह की खोज है दोस्तों
याद-ए-दिलबर ने दिल को सफ़ीना किया

एक एहसान से कम नहीं है ये भी
मौत ने ज़ीस्त का क़र्ज़ हल्का किया

चाँदनी मेरे हिस्से में आई नहीं
मैंने महताब का ख़ूब पीछा किया

'अच्युतम' था शहंशाह मैं भी कभी
वक़्त ने ताज को मेरे कासा किया

- अच्युतम यादव 


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ