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रह रह के मुझे इतना सताती है उदासी
आँसू मिरी आँखों से चुराती है उदासी
तुम सोचते तो होगे कि किसके लिए आख़िर
क़ालीन इन अश्कों की बिछाती है उदासी
जब धूप मसर्रत की मुझे लगती है छूने
साए में मुझे अपने छुपाती है उदासी
हर वक़्त मुझे रायगाँ साबित किया उसने
और देखो तो सर भी न झुकाती है उदासी
हर मोड़ पे लगता है क़ज़ा पास है अपने
इक ऐसा अजूबा भी दिखाती है उदासी
कहता हूँ उदासी कोई महताब नहीं है
सूरज की तरह सब को जलाती है उदासी
तक़दीर वरक़ माँगती है और फिर उसपे
ख़ुशियों से कहीं पहले बनाती है उदासी
- Achyutam Yadav 'Abtar'
- मसर्रत - ख़ुशी
- रायगाँ - बेकार
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