212 212 212
रूबरू होना उस ख़त से तुमलौट के आना जन्नत से तुम
यादें महँगी हुईं इन दिनों
बढ़ गए थोड़ा क़ीमत से तुम
जेब सा हूँ मैं दोनों तरफ़
और खनकती सी दौलत से तुम
खो न देना कहीं पावों को
देखकर सबकी बरकत से तुम
किस रवादारी में आ गए
चलते थे ख़ूब हिम्मत से तुम
होगे गर मेरी क़िस्मत में तो
होगे आधा ज़रूरत से तुम
'अच्युतम' में अलग क्या दिखा
देखते हो जो हैरत से तुम
- Achyutam Yadav 'Abtar'
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