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212 212 212 बह्र पर ग़ज़ल

212 212 212 behr par ghazal


212 212 212

रूबरू होना उस ख़त से तुम
लौट के आना जन्नत से तुम

यादें महँगी हुईं इन दिनों
बढ़ गए थोड़ा क़ीमत से तुम

जेब सा हूँ मैं दोनों तरफ़
और खनकती सी दौलत से तुम

खो न देना कहीं पावों को
देखकर सबकी बरकत से तुम

किस रवादारी में आ गए
चलते थे ख़ूब हिम्मत से तुम

होगे गर मेरी क़िस्मत में तो
होगे आधा ज़रूरत से तुम

'अच्युतम' में अलग क्या दिखा
देखते हो जो हैरत से तुम


- Achyutam Yadav 'Abtar'


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