2122 1122 22/112 बह्र पर ग़ज़ल
हर कोई इतना मुकम्मल क्यों है
मुझ में इस बात से हलचल क्यों है
अपनी दरवाज़े सी पलकें खोलो
उस दरीचे पे वो काजल क्यों है
अब नहीं रोता हूँ रातों में तो
खाट के पास ये दलदल क्यों है
यार मैं अक्ल का मारा हूँ ना
बोलो फिर दिल मिरा पागल क्यों है
माँ ने रोटी को दिया है तरजीह
पूछो मत हाथों में पायल क्यों है
आग इक जेब में रक्खे हो फिर
दूसरी जेब में बादल क्यों है
- Achyutam Yadav 'Abtar'
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