2122 2122 212 बह्र पर ग़ज़ल
तुमने ख़ुद को मेरा हमदम कर दिया
मैंने भी ग़म करना अब कम कर दिया
गूँज क्यों है एक सहरा की यहाँ
उसने किसकी आँखों को नम कर दिया
मैं हवा की तरह उड़ता था कभी
छू के किसने मुझको मौसम कर दिया
रोज़ दिल के फूलों पे जमती रही
तुझको इन यादों ने शबनम कर दिया
देख कर ये ज़ख़्म मेरा लोगों ने
और भी महँगा अपना मरहम कर दिया
- Achyutam Yadav 'Abtar'
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