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221 1221 1221 122 बह्र पर ग़ज़ल

221 1221 1221 122 बह्र पर ग़ज़ल

221 1221 1221 122 बह्र पर ग़ज़ल 


ताज़ीम मिले तुम को, ये आसान नहीं है
उस्ताद बनो याँ कोई नादान नहीं है


हँसता हुआ इक परदा मिरे कमरे में होगा
और बस वही उस कमरे की पहचान नहीं है


तनवीर है जर्रार की हर एक कहानी
पर उनके घरों में कोई मुस्कान नहीं है


एहसास बँधे मंद हवाओं के बदन से
अब दरमियाँ इनके कोई तूफ़ान नहीं है


नुक़्सान तो होने को हो ही सकता है मेरा
पर इसमें भी मेरा कोई नुक़्सान नहीं है


एहसान का ही क़र्ज़ अदा कर रहा हूँ मैं
ये फ़र्ज़ है मेरा कोई एहसान नहीं है


- Achyutam Yadav 'Abtar'

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