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221 2121 1221 212 बह्र पर ग़ज़ल

'221 2121 1221 212' बह्र पर ग़ज़ल

221 2121 1221 212

इक अर्सा बीता पर तू हमारा नहीं हुआ
भाए जो आँखों को वो नज़ारा नहीं हुआ

तू डूबता रहा मैं सहारा नहीं हुआ
तेरे लिए नदी का किनारा नहीं हुआ

हम ज़िन्दगी बनें कई लोगों की याँ मगर
अफ़सोस कोई शख़्स हमारा नहीं हुआ

बैदाद मेरे साथ हुआ है मैं क्या करूँ
मैं आसमाँ बना तू सितारा नहीं हुआ

तज़लील तो हुई है सो गर्दिश में आ गया
मैं इसलिए कभी भी तुम्हारा नहीं हुआ

   - Achyutam Yadav 'Abtar'

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