2212 2212 2212 2212 बह्र पर ग़ज़ल
ऐसा उमूमन तो नहीं होता कि जैसा हो गया
मैं अपनी ग़लती मान के भी आज छोटा हो गया
जब सर-ब-सर दिल मेरा यक-दम से तुम्हारा हो गया
तन्हाई का सदमा यकायक ही पुराना हो गया
आईना हैं ग़ज़लें मेरी उसके सँवरने के लिए
मेरा हर इक इक शेर मानो उसका चेहरा हो गया
हालात अपने देख के वो भी परेशाँ रहता है
चाहे वो कितना ही कहे सबसे कि 'तो क्या हो गया'
मैं दिल में ऐसी आतिशें लेके चला था उस घड़ी
सूरज ने भी आँखें मिलाईं जब तो अंधा हो गया
- Achyutam Yadav 'Abtar'
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